हरी ॐ , 

लग्न में सूर्य की स्थिति सौभाग्य एवं प्रगति का प्रतीक  है. मकर, कुम्भ, मीन, मेष, वृषभ और मिथुन में लग्नस्थ सूर्य जातक को अहंकारी, स्वार्थी तथा सत्ता लोभी बनाता है तथा कर्क, सिंह, कन्या, तुला, वृश्चिक तथा धनु में लग्नस्थ सूर्य जातक को गुणी, विनम्र, दयालु तथा बुद्धिमान बनाता है.

लग्न में सूर्य जातक को लम्बा कद और दुबली पतली देह सुंदर एवं स्वस्थ बनता है .  दृढ स्वभाव, धैर्यशीलता, स्वाभिमान, उदार व् महत्वाकांक्षी भी लग्नस्थ सूर्य ही बनाता .

लग्न में सूर्य होने से जातक का जीवन सूर्य के समान उन्नति करता है. बाल्यकाल में जितना सुख मिलता है उससे कहीं अधिक सुख युवावस्था या प्रौढ़ावस्था में भोगता है.

लग्नस्थ सूर्य प्रबल इच्छा शक्ति देता है. आत्मविश्वास और नेतृत्व के गुण भी लग्न में बैठे सूर्य के परिचायक हैं, इसी कारण जिनके लग्न में सूर्य हो वह अपने अधिकारों के प्रति बहुत सजग होते हैं और अपने अधिकारों का हनन उनको बर्दाश्त नहीं होता है. कभी कभी अपने और अपने लक्ष्यों के प्रति सजगता इतनी हावी हो जाती है कि वह दूसरों के प्रति लापरवाह हो जाते हैं.

लगन्स्थ सूर्य सिर में रोग या चोट का खतरा देता है. नेत्र रोग और पित्त रोग का खतरा भी बना रहता है.

लग्न में सूर्य कभी कभी जातक को विदेशी सम्बन्ध या विदेश जाकर धन कमाने की स्थितियां पैदा करता है.

लग्नस्थ सूर्य जातक को असंतोषी भी बनता है परन्तु दूसरों को उत्साहित करने की क्षमता ऐसे जातकों में बहुत अच्छी होती है.

पारिवारिक सम्बन्ध सामान्य रहता है. अपितु जीवन साथी से कलेश या दुःख मिलता है.

मेष , मिथुन, कर्क, सिंह, तुला, मकर, कुम्भ तथा मीन राशि का सूर्य लग्न में होने से जातक मंच कलाकार , अभिनेता , कुशल नाटककार होता है.

धनु, कर्क, वृश्चिक और मीन राशि का लग्नस्थ सूर्य जातक को विद्वान् एवं गुणी बनाता है.

कर्क लग्न में लग्नस्थ सूर्य जातक को अपने परिवार से बहुत प्रेम करने वाल बनाती है.  वृश्चिक लग्न में लग्नस्थ सूर्य जातक को कुशल चिकित्सक बनाता है.

उच्च राशी स्थित सूर्य या शुभ ग्रह की दृष्टि युक्त लग्नस्थ  सूर्य जातक को नैतिकतावादी, श्रद्धा एवं विशवास पात्र बनाती है. सामाजिक पद प्रतिष्ठा एवं सम्मान की स्थिति भी बनती है.

अग्नि तत्व राशि (मेष, सिंह, धनु ) के लग्नस्थ सूर्य के लक्षण

रोगबाल्यावस्था या आगे जीवन में ,  में चेचक , नेत्र , नसों और खसरा  रोग देता है.

स्वभाव : जातक शांत और विनम्र दिखाई पड़ता है परन्तु सूर्य अग्नितत्व क्रूर गृह होने के कारण जातक महत्वाकांक्षी , सत्ता लोभी, क्रोधी , हठी तथा कभी कभी आक्रामक भी हो जाता है.

भूतत्व तत्व राशि (वृषभ, मकर, कन्या ) के लग्नस्थ सूर्य के लक्षण

रोगनेत्र रोग देता है.

स्वभाव : जातक उद्दंड , मनमानी करने वाला तथा प्रतिष्ठित लोगों को उचित सम्मान न देने वाला परन्तु अपनी धुन का पक्का एवं परिश्रमी होता है.

वायु तत्व राशि (तुला, कुम्भ, मिथुन) के लग्नस्थ सूर्य के लक्षण

रोगज्वर की संभावना अधिक रहती है.

स्वभाव : जातक न्यायप्रिय , उदार , कला व् साहित्य प्रेमी होता है.

जल तत्व राशि (कर्क, वृश्चिक, मीन  ) के लग्नस्थ सूर्य के लक्षण

रोगह्रदय रोग, रक्त सम्बन्धी विकार , खांसी तथा ज्वर की संभावना अधिक रहती है.

स्वभाव : जातक सुंदर स्त्रियों के प्रति आकर्षित रहता है.

SURYA SHANTI KE UPAY/ सूर्य शांति के उपाय

सूर्य देव की समय के अनुसार उपासना करने से, सूर्यदेव सब कुछ प्रदान करते है , जैसे- दीर्घायु, आरोग्य, धन, ऐश्वर्य, पशु, मित्र, स्त्री, पुत्र तथा अनेकानेक उन्नति के व्यापक क्षेत्र व आठ प्रकार के भोग इत्यादि | 13 समस्त पापो की निवृति के लिए तथा अपने कल्याण के लिए सूर्ययाग विधि-विधान से करना चाहिए | यह याग मनुष्य के सभी रोगों का नाश करता हैं, एवं मनोवांछित फलो को ही प्रदान करता हैं | स्वयं भगवान श्री कृष्ण ने कहा हैं कि- शत्रुओं को समाप्त करने वाला, युद्द में विजय प्रदान करने वाला, धन और पुत्र को प्रदत्त करने वाला ‘आदित्यह्रदय स्त्रोत’ ही हैं |

  • सूर्योदय के पहले उठ कर सभी कर्यो (नित्य क्रिया-स्नान, इत्यादि) से निवृत हो भगवान सूर्य को ताम्बे के पात्र (लोटा) से जल में लाल चन्दन डाल कर अर्ध्य देना चाहिए | (अर्ध्य देते समय विशेष ध्यान देने योग्य बात जल का पात्र सर के सामने दोनों हाथ ऊपर उठा कर प्रात: निकलते हुए भगवान सूर्य को अर्घ्य की जल धारा से दर्शन करते हुए देना चाहिए | ये पवित्र जल किसी गमले, पेड़ आदि में डाल दें | अर्घ्य इस प्रकार दे की उस गिरते हुए अर्घ्य जल का छींटा आपके पाव पर ना पड़े |)
  • संध्या समय जब सूर्य अस्त हो रहे हो तो नि:सन्देह अर्घ्य देकर प्रणाम करना पूर्णत: शास्त्र सम्मत कहा गया हैं| (विशेष दिवस पर संध्या समय और प्रात:समय दोनों वक़्त अर्घ्य दे पूजन किया जाता हैं |
  • सूर्य भगवान का बारह / इक्कीस/ एक सौ आठ नामों से युक्त स्त्रोत पाठ या “सूर्यसहस्त्रनाम” का विधिवत पाठ करना चाहिए
  • नेत्ररोग की पीड़ा से बचने के लिए ‘नेत्रोपनिषद’ का विधिपूर्वक पाठ करना चाहिए |
  • रविवार को व्रत करना, सूर्यास्त से पहले-पहले संध्या निकट बिना नमक (रोटी गुड) का भोजन करना चाहिए |
  • सूर्य उपासना करने वाले को शास्त्रों के मतानुसार रविवार को तेल, नमक तथा अदरक का सेवन कदापि नहीं करना चाहिए | रविवार के दिन ब्रह्मचर्य का पालन संयम से करना चाहिए |
  • “आदित्य ह्रदय स्तोत्र“ का पाठ प्रतिदिन करना चाहिए, लाभदायक होता हैं |
  • शास्त्रों के मतानुसार रविवार का व्रत करने तथा सूर्यदेव को प्रतिदिन अर्घ्य देने से चर्म रोग समाप्त हो जाते हैं |
  • महानिबंध के मत से “सूर्य के वैदिक अनुष्ठान“ से कुष्ठ, क्षय जैसे रोगों की शांति होती हैं, तथा सिर के समस्त रोगों का नाश, नेत्र-रोग व पेट रोग की समाप्ति होती हैं |
  • भगवान सूर्य के अनेक नाम मंत्र हैं किन्तु ‘ॐ सूर्याय नाम:’ या ‘ॐ घृणि सूर्याय नाम:’ का ही प्रयोग करना चाहिए |
  •  पूजा वैदिक विधि-विधान से किसी योग्य ब्राहमण द्वारा  या उनके देखा-रेख में करनी चाहिए |
  • कुंडली में सूर्य यदि पापग्रहों के साथ हो, विशेष रूप से शनि या राहु की युति में हो तो विधिवत “रुद्राभिषेक“ करना करना चाहिए |
  • नेत्र व्याधियों में “सूर्य नमस्कार”सहित नेत्रोपनिषद का नित्य पाठ करना चाहियें |
  • संक्रांति के दिन तुलादान भी सूर्य शांति में लाभदायक हैं |
  • संभव हो तो घर का मुख्य द्वार  पूर्व दिशा में रखें |
  • सूर्य कृत साधारण अरिष्टों में नवग्रह कवच सहित सूर्य-कवच एवं शतनाम का पाठ भी शुभ फल देता हैं |

दूषित सूर्य के लक्षण और उससे जनित रोग 

  • सिर पीड़ा
  • बुखार
  • क्षय रोग
  • अतिसार (de-hydration)
  • नेत्र रोग
  • चित्त विकार
  • हड्डियों के रोग
  • राजदंड

बिना ज्योतिषी के परामर्श प्रयोग करने से लाभ की जगह नुकसानदायक साबित हो सकता हैं ग्रहों की स्थितिनुसार ही उपचार करना श्रेष्यकर है |

टीम वैदिक एस्ट्रोलॉजी सोलूशन्स 

 हरी ॐ